आज ही प्रभा खेतान जी की आत्मकथा "अन्या से अनन्या" पूरी खत्म की। बहुत लोगों ने उनकी इस आत्मकथा से नाराज़ उन्हें बेशर्म की उपाधि के साथ साथ ताने दिए कि "उनकी आत्मकथा बीच चौराहे पर उनके कपड़े उतार कर नग्न होने के समान है" उन्होंने अपनी ज़िंदगी की एक एक तह ईमानदारी से खोल कर रख दी, चाहती तो छुपा सकती थी।
"शादी सामाजिक है परंतु प्रेम प्राकृतिक है" कि तर्ज़ पर उन्होंने खुद से डबल उम्र, शादी शुदा बाल बच्चेदार डॉ से प्रेम ही नहीं किया बल्कि उसे आजीवन अविवाहित रह कर निभाया। आप सामाजिक दृष्टिकोण से विवाहित पुरुष के साथ सम्बन्ध को गलत समझ सकते हैं, आप कह सकते हैं कि उसने दूसरों की गृहस्थी उजाड़ दी लेकिन आज भी दो दो शादी किये पुरुष को आप सामान्य ले लेते हैं।
प्रभा जी ने "रखैल" शब्द के मायने बदल दिए। "रखैल" शब्द उन औरतों के लिए ये सो कोल्ड समाज यूज़ करता है जिसका रख रखाव या पूरा ख़र्चा पुरूष उठाता है (क्योंकि आर्थिक क्षेत्रों में पुरुष ने कब्जा किया औरत को किचन तक सीमित किया, रखैल होना पहले मजबूरी भी थी) लेकिन यहाँ प्रभा जी एक सफल व्यवसायी बन कर अपने प्रेमी के पूरे परिवार को पाल रही थी। प्रेमी के बीवी बच्चे के खर्चे प्रभा जी उठाती यही नहीं अपने व्यवसाय में अपने प्रेमी के बेटे को कुछ हिस्सा दे कर उसका कैरियर बनाया। वो अक्सर सोचती थी जिस औरत का खर्चा आदमी उठाये वो "रखैल" कहलाती है लेकिन यहाँ तो पुरुष का खर्चा मैंने उठाया है, प्रेमी का एक रुपया खर्च नहीं किया तो "रखैल" का मेल वर्जन क्या हो सकता है? बहुत सोचने पर भी "रखैल" का मेल वर्जन नहीं मिला। हां लेकिन ऐसे रिश्ते बहुत दुख देते हैं, दुनिया की नज़रों में आप दूसरी औरत ही होते हैं अपना सर्वस्व समर्पित करने के बाद भी।
प्रभा जी ने तत्कालीन बंगाल की राजनीतिक उथल पुथल का भी जिक्र किया है। वो बताती हैं कि वामपंथ के प्रति वे उदार थी इसीलिए उनकी मदद करती रहती थीं लेकिन वे आहत थी कि वामपंथ महिलाओं की स्थिति को बहुत हल्के में लेता था। कोई भी विचारधारा महिला अधिकारों और महिला भेदभाव को बहुत सीरियस नहीं लेता इसीलिए उनका मानना था कि नारीवाद ज़रूरी है।
खैर मुझे तो ये बुक ऑसम लगी बाकी आप देखिये।