मैं खोजती रही प्रेम, खुशियां
बाहरी, आभासी दुनिया में
गिड़गिड़ाती रही अपनों के आगे
प्रेम के लिए झोली फैला कर
कंटीले राहों में,
पथरीली सड़कों में
बेसुध , बेवजह चलती रही
अपनों के लिए
सीता की अग्नि परीक्षा सी
पल पल देती रही
उनके लिए, जिन्हें तनिक भी
परवाह न थी मेरे लिए
हार कर लौट जाना पड़ा
वापस उसी जगह
जहां जख्मी पड़ीं थीं
कराह रहीं थीं
मेरी खुशियां, मेरी उम्मीदें,
मेरी आशाएं, मेरी इच्छाएं
जहां जख्मी पड़ी थी "मैं"
जिनकी हत्या कर दी थी मैनें
अपनों के लिए
उन अपनों के लिए
जो कभी अपने थे ही नहीं
हर लड़की हत्यारी है
खुद की, खुद के सपनो की
जो हत्या कर देती है
"अपनी", अपनों के लिए
सभी लड़कीं हत्यारी हैं