बहुत उछलती थी न!
बड़ी- बड़ी बाते
दुनिया धर्म समाज की
इश्क मोहब्बत प्यार की
कपडे लत्ते और श्रृंगार की
नीति-नियम की बयार की
राजनीति और व्यापार की
चटनी और अचार की
रुक निकालते हैं
तेरे बोलने, सोचने चलने-फिरने की अकड़
हम प्रेम में नहीं फंसाते आजकल
गुजरे जमाने की बाते हैं
बोलने की कीमत जीभ से
देखने की कीमत आंखो से
इठलाने की कीमत रीढ़ की हड्डी से
तेरे हर न कीमत
तेरी योनि से!
जा अब कहीं
कोना पकड़ कर रो
और अपने औरत होने पर पछता
हमें पता है तुझे औकात में कैसे लाना है
क्योंकि फर्क तो इससे पड़ेगा न
कि तू किसकी बिटिया है
तुझे भले ये लगे की
तू कोई औरत है
और वो तेरी बिटिया है.....
कविता में बेटी होने का सामाजिक दर्दनाक उत्पीड़न का वर्णन सटीक शब्दो का इस्तेमाल अच्छे तरीके से किया गया आशा है ये कार्नर आगे भी जगरूकता अभियान जारी रखे गा
लेखिका ने लड़कियों और महिलाओं की स्थितियों को बहुत ख़ूबी से दर्शाया है
अच्छी पहल
लेखिका ने लड़कियों और महिलाओं की स्थितियों को बहुत ख़ूबी से दर्शाया है
खूबसूरत कविता
Awesome